गुरु ग्रह को ज्योतिष में विद्या, ज्ञान, पूजा, धर्म, न्याय, समृद्धि, शोभा, योग्यता, प्रवृत्ति, शिष्यता, आदर्श और गुरुत्वाकर्षक गुणों का प्रतीक माना जाता है। यह ग्रह धनु और मीन राशि का स्वामी होता है और इसका मुख्य रंग पीला होता है। गुरु ग्रह की स्थिति व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। इनकी मूल त्रिकोण राशि धनु है इसके अलावा सत्व गुण प्रधान, ब्राह्मण वर्ण जाति के हैं । 27 नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा, और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के भी स्वामी हैं। जिस जातक पर गुरु की कृपा बरसती है उस जातक के अंदर सात्विक गुणों की वृध्दि और समाज में अपनी अलग पहचान बनाने वाला होता है ।
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उच्च या बलवान गुरु का फ़ल:-
गुरु कर्क राशि में निश्चित अंश पर उच्च राशि के होते हैं । जब गुरु शुभ और बलवान अवस्था के होते हैं तो जातक उच्च ज्ञान प्राप्त करता है, शिक्षक बनता है, उत्तम संतान प्राप्त करता है. इसके अलावा गुरु धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि का कारक भी होता है। यह ग्रह शिक्षा, विद्या, ज्ञान, धर्म, धन, समृद्धि, स्वास्थ्य, विवाह, संतान, आर्थिक स्थिति, भाग्य, सामरिक क्षेत्र, आदि के क्षेत्र में प्रभावी होता है।
जब गुरु ग्रह शुभ होता है, तो व्यक्ति को आर्थिक और मानसिक धैर्य, सफलता और सम्मान प्राप्त होते हैं। वह जीवन में उन्नति की ओर बढ़ता है। यदि गुरु अपनी स्वराशि मीन या धनु अथवा उच्च राशि कर्क में स्थित होकर कुण्डली के केन्द्र स्थान में विराजमान हों तो पंच महापुरुष योगों में से ‘हंस’ नामक योग बनता है। जिसके प्रभाव से जातक बुद्धिमान व आध्यात्मिक क्षेत्र में नाम कमाने वाला और विद्वानों द्वारा प्रशंसनीय होता है।
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कमजोर या नीच राशि के गुरु का फ़ल:
गुरु मकर राशि में निश्चित अंश पर नीच राशि के होते हैं और राहु के साथ संयोग करने पर चाण्डाल योग का निर्माण करके जातक को प्रभावित करते हैं । कमजोर गुरु शुभ की अपेक्षा विपरीत फ़ल प्रदान करते हैं । इसके कारण जातक को परिश्रम अधिक करना पडता है और कदम-कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नौकरी व्यापार में तरक्की और अनुभव के बाद भी उचित सफ़लता नहीं मिल पाती । शारीरिक कष्ट के साथ वैवाहिक जीवन में विलम्ब और सुख की कमी भी आ जाती है ।
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गुरु ग्रह की शान्ति और बलवान करने के उपाय:
ज्योतिष शास्त्र में गुरु ग्रह की शान्ति के लिये निश्चित संख्या या यथासामर्थ्य मन्त्र जाप , दान, स्नान, हवन, जड़ी-बूटी धारण, रत्न धारण करना, औषधि स्नान, व्रत, यन्त्र स्थापना और पूजन आदि का सुझाव दिया गया है ।
• गुरुवार को गुरु के वैदिक मन्त्र, लौकिक मन्त्र, गुरु गायत्री मन्त्र या बीज मन्त्र का यथाशक्ति जाप करना चाहिये ।
• केले के पेड की पूजा करनी चाहिये ।
• गुरु यन्त्र की स्थापना और पूजन करें ।
• पुखराज रत्न धारण करना चाहिये ।
• पुखराज या सुनैला रत्न का लोकेट बनाकर पहनना चाहिये ।
• गुरुवार का व्रत रखना चाहिये ।
• पीत धान्य, पुखराज, कांस्यपात्र, घी, पीले पुष्प, पीला वस्त्र, पीला फ़ल, धर्म ग्रंथ आदि दान करें ।
• पीले रंग का अधिक इस्तेमाल करें ।
• चमेली पुष्प, श्वेत सरसों, शहद, गूलर, दमयन्ती. मुलेठी, नवीन पत्ते, गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें ।
गुरु ग्रह की शान्ति हेतु मन्त्र:
पौराणिक मंत्र: देवानाम च ऋषिणाम च गुरुं कांचन सन्निभम।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।।
वैदिक मन्त्र: ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
गायत्री मंत्र: ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि । तन्नो गुरुः प्रचोदयात ॥
तांत्रिक मंत्र: ॐ बृं बृहस्पतये नमः
बीज मन्त्र: ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
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